मैंने निचोड़कर दर्द मन को मानो सूखने के खयाल से रस्सी पर डाल दिया है और मन सूख रहा है बचा-खुचा दर्द जब उड़ जायेगा तब फिर पहन लूँगा मैं उसे माँग जो रहा है मेरा बेवकूफ तन बिना दर्द का मन !
हिंदी समय में भवानीप्रसाद मिश्र की रचनाएँ